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"पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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चाह नहीं मैं सुरबाला के
 
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बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
 
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चाह नहीं, सम्राटों के शव
 
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, है हरि, डाला जाऊँ
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चाह नहीं, देवों के शिर पर,
 
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चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
 
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!

10:22, 6 अक्टूबर 2009 का अवतरण

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।