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सारी शर्म छोड़
 
सारी शर्म छोड़

19:42, 10 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

सारी शर्म छोड़
और सारे बन्धन तोड़
घूमने लगा है ख़ून
शिराओ मे
कि जैसे तेज़ वाहन
दौड़ रहा हो
स्पीड-ब्रेकरो से भरी सड़को पर

प्रेम से काटता है यह विषभरा नाग
और वहीं कही सो जाता है
ख़ून की झाड़ियो मे

मैने सब्ज़ी वाले से पूछा
तुमने सुना है इस नाग का नाम
वह सब्ज़ी के भाव बताने लगा

ड्बलरोटी वाले से पूछा
तो वह मक्खन दिखाने लगा

एक मैकेनिक से पूछा मैने
उसने औज़ार मेरे सिर पर पटक दिए

पूछा एक मजूर से
उसने सिर पर दो ईटे और रखी
और फटाफट बनती इमारत पर चढने लगा

एक बद्धिजीवी से भी पूछ लिया
वह हल्के सा मुस्कराया
फिर एक झोला दिखाया

दरअसल हम दोनो उसी झोले मे बन्द है

झोले मे कर लिए मैने सुराख़
वही से कभी सब्ज़ी वाले को
कभी मजूर को देखता हूँ
नाग है कि झोले मे
सूराख़ों के बावजूद
जमा है झोले के अन्दर ही।