भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुरमुट / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल }} <poem> मज़दूर के हाथों रोडी कूटता दुर...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=प्रताप सहगल  
 
|रचनाकार=प्रताप सहगल  
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>
 
मज़दूर के हाथों
 
मज़दूर के हाथों
रोडी कूटता दुरमुट
+
रोड़ी कूटता दुरमुट
 
फिसल जाता है
 
फिसल जाता है
  
पंक्ति 19: पंक्ति 20:
 
स्टेनगन होता है दुरमुट
 
स्टेनगन होता है दुरमुट
  
और धर्माचार्य के होठों पर
+
और धर्माचार्य के होंठों पर
 
काला मंत्र
 
काला मंत्र
  

19:38, 10 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

मज़दूर के हाथों
रोड़ी कूटता दुरमुट
फिसल जाता है

हथिया लेता है उसे डाक्टर
और मोटी सुई बना लेता है

मास्टर के हाथों मे
छ्डी बन जाता है दुरमुट

पिता के हाथों मे आदेश

राजनेता के हाथ मे
स्टेनगन होता है दुरमुट

और धर्माचार्य के होंठों पर
काला मंत्र

अजीब शै है दुरमुट
हाथ बदलते ही शक्ल बदलता है
सुई, छड़ी, आदेश, काला मंत्र
या नौकरशाह की
भारी भरकम क़लम

कितना अच्छा लगता है
मज़दूर के हाथों मे ही दुरमुट
समतल करता ज़मीन
उस पर बनता है फ़र्श
फ़र्श पर ही टिके रहते है पाँव
वही से दिखते है शहर, कस्बे और गाँव

दुरमुट का हाथ बदलना
इतिहास मे बार-बार हुई दुर्घटना है