भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पल्लू की कोर दाब दाँत के तले / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | कवि: [[उमाकांत मालवीय]]
| |
− | [[Category: पल्लू की कोर दाब दाँत के तले]]
| |
− | [[Category: उमाकांत मालवीय]]
| |
| | | |
− | ~*~*~*~*~*~*~*~
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
| |
− |
| |
− | कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | कंगना की खनक
| |
− |
| |
− | पड़ी हाथ हथकड़ी ।
| |
− |
| |
− | पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,
| |
− |
| |
− | हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | नाजों में पले छैल सलोने पिया,
| |
− |
| |
− | यूँ न हो अधीर,
| |
− |
| |
− | तनिक धीर धर पिया ।
| |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
− | बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,
| |
− |
| |
− | आऊँगी मिलने में पिय दिया जले ।
| |
02:29, 27 अगस्त 2006 का अवतरण