भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उन सभी मीराओं के लिए / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} <Poem> तुम्हारे पहले भी छंद रचे हों...)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=लाल्टू
 
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
+
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
<Poem>
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
तुम्हारे पहले भी छंद रचे होंगे युवतियों ने
 
तुम्हारे पहले भी छंद रचे होंगे युवतियों ने
 
अधेड़ महिलाएँ सफ़ाई करतीं खाना बनातीं
 
अधेड़ महिलाएँ सफ़ाई करतीं खाना बनातीं

12:59, 24 मई 2010 के समय का अवतरण

तुम्हारे पहले भी छंद रचे होंगे युवतियों ने
अधेड़ महिलाएँ सफ़ाई करतीं खाना बनातीं
गाती होंगी गीत तुमसे पहले भी

किसने दी तुम्हें यह हिम्मत
कैसी थी वह व्यथा प्रेम की मीरा
कौन थीं तुम्हारी सखियाँ
जिन्होंने दिया तुम्हें यह जहर

कैसा था वह स्वाद जिसने
छीन ली तुमसे हड्डियों की कंपन
और गाने लगी तुम अमूर्त्त प्रेम के गीत

उन सभी मीराओं के लिए जो तुमसे पहले आईं
मैं दर्ज़ करता हूँ व्यथाओं के खाते में अपना नाम
मेरा प्रतिवाद कि मैं हूँ अधूरा अपूर्ण
मुझसे छीन लिए गए हैं मेरी माँओं के आँसू
आँसू जिनसे सीखने थे मैंने अपने प्रेम के बोल
अपनी राधाओं को जो सुनाने थे छंद।