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"हाथों का तराना / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

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इन हाथों की ताज़ीम१ करो
 
इन हाथों की ताज़ीम१ करो

10:32, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

इन हाथों की ताज़ीम१ करो
इन हाथों की तकरीम२ करो
दुनिया को चलाने वाले हैं
इन हाथों को तस्लीम३ करो

तारीख़ के और मशीनों के पहियों की रवानी इनसे है
तहज़ीब की और तमद्दुन की भरपूर जवानी इनसे है
दुनिया का फ़साना इनसे है, इन्साँ की कहानी इनसे है
इन हाथों की ताज़ीम करो

सदियों से गुज़र कर आये हैं, ये नेक और बद को जानते हैं
ये दोस्त हैं सारे आलम के, पर दुश्मन को पहचानते हैं
खुद शक्ति का अवतार हैं ये, कब गै़र की शक्ति मानते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

है ज़ख़्म हमारे हाथों के, ये फूल जो हैं गुलदानों में
सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे, जो जाम हैं अब मयख़ानों में
टूटी हुई सौ अँगडा़इयों की मेहराबें हैं ऐवानों४ में
इन हाथों की ताज़ीम करो

राहों की सुनहरी रौशनियाँ, बिजली के जो फैले दामन हैं
फ़ानूस हसीं ऐवानों के, जो रंग और नूर के ख़िरमन हैं
ये हाथ हमारे जलते हैं, यह हाथ हमारे रौशन हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

खा़मोश हैं ये, खा़मोशी से, सौ बर्बत-ओ-चंग५ बनाते हैं
तारों में राग सुलाते हैं, तबलों में बोल छुपाते हैं
जब साज़ में जुम्बिश होती है, तब हाथ हमारे गाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

एजाज़ है ये इन हाथों का, रेशम को छुएँ तो आँचल है
पत्थर को छुएँ तो बुत कर दें, कालिक को छुएँ तो काजल है
मिट्टी को छुएँ तो सोना है, चाँदी को छुएँ तो पायल है
इन हाथों की ताज़ीम करो

बहती हुई बिजली की लहरें, सिमटे हुए गंगा के धारे
धरती के मुक़द्दर के मालिक, मेहनत के उफ़ुक के सय्यारे६
यह चारागराने-दर्दे-जहाँ, सदियों से मगर ख़ुद बेचारे
इन हाथों की ताज़ीम करो

तख़्लीक़७ यह सोज़े-मेहनत की, और फ़ितरत के शहकार भी हैं
मैदाने-अमल में लेकिन खु़द, ये खा़लिक़ भी मे’मार भी हैं
फूलों से भरे ये शाख़ भी हैं और चलती हुई तलवार भी हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

ये हाथ न हों तो मुह्मल८ सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
ये हाथ न हों तो बेमानी, इन्सानों की तक़दीरें हैं
सब हिकमतो-दानिश, इल्मो-हुनर, इन हाथों की तफ़सीरें हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

ये कितने सबुक और नाज़ुक हैं, ये कितने सुडौल और अच्छे हैं
चालाकी में उस्ताद हैं ये, और भोलेपन में बच्चे हैं
इस झुठ की गन्दी दुनिया में, बस हाथ हमारे सच्चे हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

यह सरहद-सरहद जुड़ते हैं और मुल्कों-मुल्कों जाते हैं
बाँहों में बाँहें डालते हैं और दिल को दिल से मिलाते हैं
फिर ज़ुल्मो-सितम के पैरों की ज़ंजीरे-गराँ९ बन जाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

१.सम्मान २.आदर-सत्कार ३.स्वीकार ४.महलों में ५.एक तरह का बाजा ६.क्षितिज पर घूमने वाले तारे ७.सृष्टि ८.अर्थहीन ९.भारी ज़ंजीरें