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"पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर

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आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है,
 
आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है,
मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले|
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मग़रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले|
  
 
कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात,
 
कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात,

11:07, 24 जून 2020 के समय का अवतरण

पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले|
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले|

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है,
मग़रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले|

कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात,
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले|

मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर,
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले|

परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो,
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले|