भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सरस्वती / राधावल्लभ त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राधावल्लभ त्रिपाठी |संग्रह=सन्धानम / राधावल्ल...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=सन्धानम / राधावल्लभ त्रिपाठी
 
|संग्रह=सन्धानम / राधावल्लभ त्रिपाठी
 
}}
 
}}
 +
KKCatSanskritRachna
 
<Poem>
 
<Poem>
 
हमारे देश की सरस्वती को
 
हमारे देश की सरस्वती को
ले गए अंग्रेज़
+
ले गए अँग्रेज़
 
महाराज भोज ने बनवाया था जिसे
 
महाराज भोज ने बनवाया था जिसे
 
गौरवमय वह सरस्वती
 
गौरवमय वह सरस्वती
ब्धुओ, लंदन के संग्रहालय में क़ैद है
+
बन्धुओ, लंदन के संग्रहालय में क़ैद है
 
वज़्र की तरह कठोर शब्दों में
 
वज़्र की तरह कठोर शब्दों में
पंडित दामोदर ने
+
पण्डित दामोदर ने
भरी सभा में की ऎसी गर्जना।
+
भरी सभा में की ऐसी गर्जना ।
 
हिल उठी सभा
 
हिल उठी सभा
फिर विष्ण्ण और क्षुब्ध हुई।
+
फिर विष्ण्ण और क्षुब्ध हुई ।
कुछ लोगों की आँखों में तो आ ही गए आँसू।
+
कुछ लोगों की आँखों में तो आ ही गए आँसू ।
 
तत्काल उन्होंने असंकल्प किया
 
तत्काल उन्होंने असंकल्प किया
कि लौटाकर लाएंगे सरस्वती को
+
कि लौटाकर लाएँगे सरस्वती को
 
प्रस्ताव के पारित होते ही
 
प्रस्ताव के पारित होते ही
 
पिटीं तालियाँ
 
पिटीं तालियाँ
पंक्ति 23: पंक्ति 24:
 
तुमुल उस कोलाहल को सुनकर
 
तुमुल उस कोलाहल को सुनकर
 
जन-जन के मन में बसी
 
जन-जन के मन में बसी
शुभ्र सरस्वती देवी हँसी।
+
शुभ्र सरस्वती देवी हँसी ।
 
</poem>
 
</poem>

18:52, 17 जून 2014 के समय का अवतरण

KKCatSanskritRachna

हमारे देश की सरस्वती को
ले गए अँग्रेज़
महाराज भोज ने बनवाया था जिसे
गौरवमय वह सरस्वती
बन्धुओ, लंदन के संग्रहालय में क़ैद है
वज़्र की तरह कठोर शब्दों में
पण्डित दामोदर ने
भरी सभा में की ऐसी गर्जना ।
हिल उठी सभा
फिर विष्ण्ण और क्षुब्ध हुई ।
कुछ लोगों की आँखों में तो आ ही गए आँसू ।
तत्काल उन्होंने असंकल्प किया
कि लौटाकर लाएँगे सरस्वती को
प्रस्ताव के पारित होते ही
पिटीं तालियाँ
हर्षध्वनि हुई तुमुल
तुमुल उस कोलाहल को सुनकर
जन-जन के मन में बसी
शुभ्र सरस्वती देवी हँसी ।