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"इब्ने-मरियम हुआ करे कोई / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | + | क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से | |
− | + | अब किसे रहनुमा करे कोई | |
− | + | जब तवक़्क़ो ही उठ गयी "ग़ालिब" | |
− | + | क्यों किसी का गिला करे कोई</poem> | |
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09:24, 3 मार्च 2010 का अवतरण
इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई
शर'अ-ओ-आईना पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई
चाल, जैसे कड़ी कमां का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई
बात पर वां ज़बान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई
बक रहा हूँ जुनूं में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो, गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई
कौन है जो नहीं है हाजतमंद
किसकी हाजत रवा करे कोई
क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा करे कोई
जब तवक़्क़ो ही उठ गयी "ग़ालिब"
क्यों किसी का गिला करे कोई