भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"किसी को दे के दिल कोई नवासंजे-फ़ुग़ाँ क्यों हो / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=ग़ालिब
 
|रचनाकार=ग़ालिब
 +
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
किसी को दे के दिल कोई नवासंज-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो
 +
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यों हो
  
किसी को दे के दिल कोई नवासंज-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो <br>
+
वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़ा क्यों बदलें
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यों हो <br><br>
+
सुबुकसार बनके क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यों हो  
  
वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़ा क्यों बदलें <br>
+
किया ग़मख़्वार ने रुसवा लगे आग इस मुहब्बत को
सुबुकसार बनके क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यों हो <br><br>
+
न लाये ताब जो ग़म की वो मेरा राज़दाँ क्यों हो  
  
किया ग़मख़्वार ने रुसवा लगे आग इस मुहब्बत को <br>
+
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
न लाये ताब जो ग़म की वो मेरा राज़दाँ क्यों हो <br><br>
+
तो फिर ऐ संग-ए-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यों हो  
  
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा <br>
+
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम
तो फिर ऐ संग-ए-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यों हो<br><br>
+
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यों हो  
  
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम <br>
+
ये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बताओ
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यों हो <br><br>
+
कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यों हो  
  
ये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बताओ <br>
+
ग़लत है जज़बा-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किसका है
कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यों हो <br><br>
+
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दर्मियाँ क्यों हो  
  
ग़लत है जज़बा-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किसका है <br>
+
ये फ़ितना आदमी की ख़ानावीरानी को क्या कम है  
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दर्मियाँ क्यों हो <br><br>
+
हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आस्माँ क्यों हो  
  
ये फ़ितना आदमी की ख़ानावीरानी को क्या कम है <br>
+
यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं
हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आस्माँ क्यों हो <br><br>
+
अदू के हो लिये जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यों हो  
  
यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं <br>
+
कहा तुमने कि क्यों हो ग़ैर के मिलने में रुसवाई
अदू के हो लिये जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यों हो <br><br>
+
बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहियो कि हाँ क्यों हो  
  
कहा तुमने कि क्यों हो ग़ैर के मिलने में रुसवाई <br>
+
निकाला चाहता है काम क्या तानों से तू "ग़ालिब"  
बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहियो कि हाँ क्यों हो<br><br>
+
तेरे बेमहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यों हो
 
+
</poem>
निकाला चाहता है काम क्या तानों से तू "ग़ालिब" <br>
+
तेरे बेमहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यों हो <br><br>
+

16:33, 1 जून 2010 के समय का अवतरण

किसी को दे के दिल कोई नवासंज-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यों हो

वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़ा क्यों बदलें
सुबुकसार बनके क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यों हो

किया ग़मख़्वार ने रुसवा लगे आग इस मुहब्बत को
न लाये ताब जो ग़म की वो मेरा राज़दाँ क्यों हो

वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
तो फिर ऐ संग-ए-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यों हो

क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यों हो

ये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बताओ
कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यों हो

ग़लत है जज़बा-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किसका है
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दर्मियाँ क्यों हो

ये फ़ितना आदमी की ख़ानावीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आस्माँ क्यों हो

यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं
अदू के हो लिये जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यों हो

कहा तुमने कि क्यों हो ग़ैर के मिलने में रुसवाई
बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहियो कि हाँ क्यों हो

निकाला चाहता है काम क्या तानों से तू "ग़ालिब"
तेरे बेमहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यों हो