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"दहर में नक़्शे-वफ़ा / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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<poem>दहर<ref>संसार</ref> में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
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है यह वो लफ़्ज़ कि शर्मिन्दा-ए-माअ़नी<ref>सार्थक</ref> न हुआ
  
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ <br>
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सब्ज़ए-ख़त से तेरा काकुल-ए-सरकश<ref>(स्त्री की)ज़ुल्फें</ref> न दबा
है यह वह लफ़्ज़ कि शर्मिन्दह--मनी न हुआ <br><br>
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मैंने चाहा था कि अन्दोह-ए-वफ़ा से छूटूं
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वह सितमगर मेरे मरने पे भी राज़ी न हुआ  
  
मैं ने चाहा था कि अन्दोह--वफ़ा से छूटूं <br>
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दिल गुज़रगाह ख़याले-मै-ओ-साग़र ही सही
वह सितमगर मिरे मरने पह भी राज़ी न हुआ <br><br>
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किससे महरूमिए-क़िस्मत<ref>दुर्भाग्य</ref> की शिकायत कीजे
गोश मिन्नत-कश-ए-गुलबांग-ए-तसल्ली न हुआ <br><br>
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हम ने चाहा था कि मर जाएं, सो वह भी न हुआ  
  
किस से महरूमी-ए-क़िस्मत की शिकायत कीजे <br>
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हम ने चाहा था कि मर जाएं सो वह भी न हुआ <br><br>
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नातुवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-`ईसा न हुआ
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06:33, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

दहर<ref>संसार</ref> में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
है यह वो लफ़्ज़ कि शर्मिन्दा-ए-माअ़नी<ref>सार्थक</ref> न हुआ

सब्ज़ए-ख़त से तेरा काकुल-ए-सरकश<ref>(स्त्री की)ज़ुल्फें</ref> न दबा
यह ज़मुर्रद<ref>नीलम (पत्थर)</ref> भी हरीफ़े<ref>विरोधी</ref>-दमे-अफ़ई<ref>साँप</ref> न हुआ

मैंने चाहा था कि अन्दोह-ए-वफ़ा से छूटूं
वह सितमगर मेरे मरने पे भी राज़ी न हुआ

दिल गुज़रगाह ख़याले-मै-ओ-साग़र ही सही
गरनफ़स<ref>सांस</ref> जादा<ref>मार्ग</ref>-ए-सर-मंज़िल-ए-तक़वी<ref>परलोक की मंजिल</ref> न हुआ

हूँ तेरे वादा न करने में भी राज़ी कि कभी
गोश<ref></ref> मिन्नत-कश-ए-गुलबांग-ए-तसल्ली<ref>सांत्वना की मधुर ध्वनि</ref> न हुआ

किससे महरूमिए-क़िस्मत<ref>दुर्भाग्य</ref> की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएं, सो वह भी न हुआ

मर गया सदमा-ए-यक जुम्बिशे-लब<ref>होंठ हिलना</ref> से ग़ालिब
नातवानी<ref>दुर्बलता</ref> से हरीफ़<ref>विरोधी</ref>-ए-दम-ए-ईसा<ref>ईसा के मंत्र</ref> न हुआ

शब्दार्थ
<references/>