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"धमकी में मर गया / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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<poem>धमकी में मर गया जो न बाबे-नबर्द<ref>युद्ध का अभ्यासी</ref> था
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था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ
इश्क़-ए-नबर्द पेशह तलबगार-ए-मर्द था <br><br>
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उड़ने से पेशतर भी मिरा रंग ज़र्द था  
  
था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ<br>
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दिल ता ज़िग़र कि साहिल-ए-दरया-ए-खूं है अब
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इस रहगुज़र में जलवा-ए-गुल आगे दर्द था  
  
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{{KKMeaning}}
हक़ मग़्फ़रत करे `अजब आज़ाद मर्द था
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05:55, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

धमकी में मर गया जो न बाबे-नबर्द<ref>युद्ध का अभ्यासी</ref> था
इश्क़े-नबर्द-पेशा तलबगारे-मर्द था

था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेशतर भी मिरा रंग ज़र्द था

तालीफ़<ref>सम्पादन></ref> नुसख़ा-हाए-वफ़ा<ref>वफ़ा की किताब</ref> कर रहा था मैं
मजमूअ-ए-ख़याल<ref>विचार-समूह</ref> अभी फ़र्द-फ़र्द<ref>बिखरा हुआ</ref> था

दिल ता ज़िग़र कि साहिल-ए-दरया-ए-खूं है अब
इस रहगुज़र में जलवा-ए-गुल आगे दर्द था

जाती है कोई कश्मकश अन्दोहे-इश्क़<ref>प्रेम की वेदना</ref> की
दिल भी अगर गया, तो वही दिल का दर्द था

अहबाब<ref>मित्र</ref> चारा-साज़ी-ए-वहशत<ref>उन्माद का उपचार</ref> न कर सके
ज़िन्दां में भी ख़याल बयाबां-नवर्द<ref>जंगल में घूमना</ref> था

यह लाश बेकफ़न 'असदे-ख़स्ता-जां' की है
हक़ मग़फ़िरत<ref>मुक्ति</ref> करे अजब आज़ाद मर्द था

शब्दार्थ
<references/>