भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गोपिन के अँसुवान के नीर / तोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तोष }} <poem> गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे बहे बहिक...)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
 
गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे बहे बहिकै भए नारे ।
 
गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे बहे बहिकै भए नारे ।
 
 
नारे भए ते भई नदियाँ नदियाँ नद ह्वै गए काटि कगारे ।
 
नारे भए ते भई नदियाँ नदियाँ नद ह्वै गए काटि कगारे ।
 
 
बेगि चलौ तो चलो ब्रज को कवि तोष कहै ब्रजराज दुलारे ।
 
बेगि चलौ तो चलो ब्रज को कवि तोष कहै ब्रजराज दुलारे ।
 
 
वे नद चाहत सिँधु भए अब सिँधु ते ह्वै हैँ जलाजल खारे ।
 
वे नद चाहत सिँधु भए अब सिँधु ते ह्वै हैँ जलाजल खारे ।
  

12:08, 3 जून 2009 के समय का अवतरण

गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे बहे बहिकै भए नारे ।
नारे भए ते भई नदियाँ नदियाँ नद ह्वै गए काटि कगारे ।
बेगि चलौ तो चलो ब्रज को कवि तोष कहै ब्रजराज दुलारे ।
वे नद चाहत सिँधु भए अब सिँधु ते ह्वै हैँ जलाजल खारे ।


तोष का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।