भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं कुछ नहीं भूली / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''मैं कुछ नहीं भूली''' सब याद ...) |
|||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
नहीं भूले हम। | नहीं भूले हम। | ||
आज लगता है- | आज लगता है- | ||
− | + | मैंने उसका दिल गल-घिसाया था। | |
पूस माघ की ठंडी रातें | पूस माघ की ठंडी रातें | ||
‘मौसी’ के गले हाथ | ‘मौसी’ के गले हाथ | ||
पंक्ति 40: | पंक्ति 40: | ||
हाथ-पोंछते हाथ | हाथ-पोंछते हाथ | ||
सब याद है मुझे। | सब याद है मुझे। | ||
+ | </poem> |
22:57, 5 जून 2009 का अवतरण
मैं कुछ नहीं भूली
सब याद है मुझे
हमारे आँगन का ‘नलका’
‘खुरे’ में बैठ
मौसी का बर्तन माँजना
डिब्बे में राख रख
इक जटा-सी हाथ पकड़।
काले हाथों पर
लकडि़यों के चूल्हे की
सारी कालिख...
याद है मुझे।
जाने कितने घरों में काम करती थी ‘मौसी’
मेरे मुँह ‘बर्तनोंवाली’ सुन
‘मौसी’ का गुस्सा
गुस्से में बड़-बड़
याद है मुझे।
फिर कभी मौसी कहना
नहीं भूले हम।
आज लगता है-
मैंने उसका दिल गल-घिसाया था।
पूस माघ की ठंडी रातें
‘मौसी’ के गले हाथ
सब याद है मुझे।
स्कूल के बाहर
छाबडी-सी ले
चूरन बेचता ‘मौसी’ का पति
आधी राह छोड़ चला गया ;
तीन-तीन बेटियों का ब्याह
सब याद है मुझे।
मुझे ब्याह की असीस
"जीती रह मेरी बच्ची"
‘मौसी’ का दुपट्टा
हाथ-पोंछते हाथ
सब याद है मुझे।