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"माँ! / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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पूरा घिरा
 
पूरा घिरा
 
प्राणतल मेरा।
 
प्राणतल मेरा।
अभ्यासों से
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पुनर्जन्म पा-पा
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मिट जातीं
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ईखों की अजस्र
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मृदुधारा को
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लपटें
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निःशेष करातीं।
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::: निःशेष करातीं।
 
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01:37, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

वे मधुवांछी
अभिलाषी जन
रोप गए
ईखों की पौधें,
पूरा घिरा
प्राणतल मेरा।
अभ्यासों से
पुनर्जन्म पा-पा
मिट जातीं
ईखों की अजस्र
मृदुधारा को
लपटें
निःशेष करातीं।