भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो दिल नवाज़ है नज़र शनास नहीं / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=नासिर काज़मी
 
|रचनाकार=नासिर काज़मी
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
  
वो दिल नवाज़ है नज़र शनास नहीं <br>
+
वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं <br>
 
मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं<br><br>  
 
मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं<br><br>  
  
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
  
 
तेरे उजालों में भी दिल काँप-काँप उठता है <br>
 
तेरे उजालों में भी दिल काँप-काँप उठता है <br>
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीँ <br><br>
+
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीं <br><br>
  
कभी-कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़रे थे <br>
+
कभी-कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़ारे थे <br>
 
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं <br><br>
 
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं <br><br>
  
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
सहर की आस तो है ज़िन्दगी की आस नहीं <br><br>
 
सहर की आस तो है ज़िन्दगी की आस नहीं <br><br>
  
मुझे ये डर है कि तेरी आरज़ू न मिट जाये <br>
+
मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाये <br>
 
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नहीं <br><br>
 
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नहीं <br><br>

04:18, 28 नवम्बर 2009 का अवतरण

वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं

तड़प रहे हैं ज़बाँ पर कई सवाल मगर
मेरे लिये कोई शयान-ए-इल्तमास नहीं

तेरे उजालों में भी दिल काँप-काँप उठता है
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीं

कभी-कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़ारे थे
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं

गुज़र रहे हैं अजब मर्हलों से दीदा-ओ-दिल
सहर की आस तो है ज़िन्दगी की आस नहीं

मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाये
बहुत दिनों से तबीयत मेरी उदास नहीं