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"वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिस / जोश मलीहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे
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बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे
  
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अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिंदाँने बादाख्वार
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे<br><br>
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रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे
  
अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिंदाँने बादाख्वार <br>
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बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई
रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे<br><br>
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इस चर्ख़-ए-नाज़ से क़द--बाला कहें जिसे
  
बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई<br>
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ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक
इस चर्ख़-ए-नाज़ से क़द-ए-बाला कहें जिसे<br><br>
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ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम-ओ-हव्वा कहें जिसे
  
ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक <br>
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कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब
ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम-ओ-हव्वा कहें जिसे<br><br>
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दिल की ज़ुबाँ में वादा-ए-फ़रदा कहें जिसे
  
कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब <br>
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मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीम-ए-ज़ुल्फ़
दिल की ज़ुबाँ में वादा-ए-फ़रदा कहें जिसे<br><br>
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मेरी नज़र है चेहरा-ए-ज़ेबा कहें जिसे
  
मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीम-ए-ज़ुल्फ़ <br>
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लो आ रहा है वो कोई मस्त-ए-ख़राम से
मेरी नज़र है चेहरा-ए-ज़ेबा कहें जिसे<br><br>
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इस चाल से के लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे
  
लो आ रहा है वो कोई मस्त-ए-ख़राम से <br>
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तेरे निशात-ए-ख़ाना-ए-अमरोज़ में नहीं
इस चाल से के लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे<br><br>
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वो बुज़दिली के ख़तरा-ए-फ़रदा कहें जिसे  
  
तेरे निशात-ए-ख़ाना-ए-अमरोज़ में नहीं <br>
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ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर
वो बुज़दिली के ख़तरा-ए-फ़रदा कहें जिसे <br><br>
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ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर<br>
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ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे
 
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे

21:57, 5 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे

अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिंदाँने बादाख्वार
रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे

बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई
इस चर्ख़-ए-नाज़ से क़द-ए-बाला कहें जिसे

ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक
ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम-ओ-हव्वा कहें जिसे

कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब
दिल की ज़ुबाँ में वादा-ए-फ़रदा कहें जिसे

मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीम-ए-ज़ुल्फ़
मेरी नज़र है चेहरा-ए-ज़ेबा कहें जिसे

लो आ रहा है वो कोई मस्त-ए-ख़राम से
इस चाल से के लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे

तेरे निशात-ए-ख़ाना-ए-अमरोज़ में नहीं
वो बुज़दिली के ख़तरा-ए-फ़रदा कहें जिसे

ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे