"पृथ्वी दिखलावे करती है / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
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हीरे मोती जड़ी चादरें | हीरे मोती जड़ी चादरें | ||
− | सिर पर | + | सिर पर ओेढ़े |
पृथ्वी दिखलावे करती है | पृथ्वी दिखलावे करती है | ||
परम सुखों के। | परम सुखों के। | ||
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कोई आकर पूछे इससे | कोई आकर पूछे इससे | ||
छाती में ज्वालामुखियाँ भर | छाती में ज्वालामुखियाँ भर | ||
− | किसे भुलावे देती हो तुम | + | किसे भुलावे देती हो तुम, |
जमे हुए औ’ सर्द | जमे हुए औ’ सर्द | ||
पर्वतों-से दुःख ढोकर | पर्वतों-से दुःख ढोकर | ||
नदियाँ क्या यूँ ही | नदियाँ क्या यूँ ही | ||
− | + | बहती हैं? | |
− | मीठे रस के | + | |
+ | मीठे रस के स्रोत तुम्हारे | ||
खारे पानी | खारे पानी | ||
क्यूँ ढलते हैं? | क्यूँ ढलते हैं? | ||
+ | |||
फिर चाहे पैंजनी बजाती | फिर चाहे पैंजनी बजाती | ||
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या सूरज का पहन बोरला | या सूरज का पहन बोरला | ||
आँचल को अटकाए | आँचल को अटकाए | ||
− | + | झूमो | |
शाख-शाख से ताल बजाओ | शाख-शाख से ताल बजाओ | ||
माथे पर कुमकुम छितराओ | माथे पर कुमकुम छितराओ | ||
− | + | सुबह-शाम तुम, | |
पर चुपके-चुपके रोती हो | पर चुपके-चुपके रोती हो | ||
− | + | अंधेरे में, | |
इसीलिए तो हीरों वाले | इसीलिए तो हीरों वाले | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 45: | ||
किंतु पता है....... | किंतु पता है....... | ||
तुम तो दिखलावे करती हो | तुम तो दिखलावे करती हो | ||
− | + | परम सुखों के | |
+ | केवल दिखलावे ...... | ||
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04:37, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
पृथ्वी दिखलावे करती है
हीरे मोती जड़ी चादरें
सिर पर ओेढ़े
पृथ्वी दिखलावे करती है
परम सुखों के।
कोई आकर पूछे इससे
छाती में ज्वालामुखियाँ भर
किसे भुलावे देती हो तुम,
जमे हुए औ’ सर्द
पर्वतों-से दुःख ढोकर
नदियाँ क्या यूँ ही
बहती हैं?
मीठे रस के स्रोत तुम्हारे
खारे पानी
क्यूँ ढलते हैं?
फिर चाहे पैंजनी बजाती
रात-रात भर सज कर
घूमो
या सूरज का पहन बोरला
आँचल को अटकाए
झूमो
शाख-शाख से ताल बजाओ
माथे पर कुमकुम छितराओ
सुबह-शाम तुम,
पर चुपके-चुपके रोती हो
अंधेरे में,
इसीलिए तो हीरों वाले
आँचल के पल्लू से आँसू
गिर जाते हैं,
सुबह-सुबह ही
झट से जिन्हें
छिपाकर पोंछो
किंतु पता है.......
तुम तो दिखलावे करती हो
परम सुखों के
केवल दिखलावे ......