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"जाहिल के बाने / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे | + | आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर |
− | आप सोचते हैं कि सीखता यह भी | + | आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर |
− | मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने | + | आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी |
− | धोती-कुरता बहुत ज़ोर से | + | आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी |
+ | आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं | ||
+ | आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैं | ||
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+ | आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे | ||
+ | आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढँग हमारे | ||
+ | मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने | ||
+ | धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूँ याने !</poem> |
23:53, 2 मार्च 2013 का अवतरण
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूँ
आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर
आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर
आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी
आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी
आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं
आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैं
आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढँग हमारे
मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूँ याने !