भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पथ आंगन पर रखकर आई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | |रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br> | पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br> | ||
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br> | बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br> |
23:07, 8 अक्टूबर 2009 का अवतरण
पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई।
झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।
लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।
घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।