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"अन्न पचीसी के दोहे / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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सीधे-सादे  शब्द  हैं, भाव  बडे ही गूढ़
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अन्न-पचीसी घोख ले, अर्थ जान ले मूढ़
  
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कबिरा खड़ा बाज़ार में, लिया लुकाठी हाथ
 
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बन्दा क्या घबरायेगा, जनता  देगी  साथ
 
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छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो  लूट
 
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मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट
 
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आज गहन है भूख का, धुंधला है आकाश
 
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कल  अपनी  सरकार  का होगा  पर्दाफ़ाश
 
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नागार्जुन-मुख से कढे  साखी  के ये  बोल
 
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साथी  को  समझाइये  रचना  है अनमोल
 
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अन्न-पचीसी मुख्तसर, लग  करोड़-करोड़
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सचमुच ही लग जाएगी आँख कान में होड़
 
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अन्न्ब्रह्म ही ब्रह्म  है  बाकी  ब्रहम पिशाच
 
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औघड मैथिल  नागजी  अर्जुन यही उवाच
 
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''' रचनाकाल :१९७४ में लिखी गई
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22:00, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

सीधे-सादे शब्द हैं, भाव बडे ही गूढ़
अन्न-पचीसी घोख ले, अर्थ जान ले मूढ़

कबिरा खड़ा बाज़ार में, लिया लुकाठी हाथ
बन्दा क्या घबरायेगा, जनता देगी साथ

छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट
मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट

आज गहन है भूख का, धुंधला है आकाश
कल अपनी सरकार का होगा पर्दाफ़ाश

नागार्जुन-मुख से कढे साखी के ये बोल
साथी को समझाइये रचना है अनमोल

अन्न-पचीसी मुख्तसर, लग करोड़-करोड़
सचमुच ही लग जाएगी आँख कान में होड़

अन्न्ब्रह्म ही ब्रह्म है बाकी ब्रहम पिशाच
औघड मैथिल नागजी अर्जुन यही उवाच


रचनाकाल :१९७४ में लिखी गई