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"दो शे’र / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर

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हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥
 
हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥
  
(( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।
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(( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।  
  
  वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ ))
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वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ ))

12:41, 17 जुलाई 2009 का अवतरण


किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’!

हर परदे के बाद और एक परदा नज़र आता है॥


वो करते हैं सब छुपकर, तदबीर इसे कहते हैं।

हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥

(( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।

वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ ))