भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
छो |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ <br> | उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ <br> | ||
− | चूल्हे | + | चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई <br> |
− | + | ||
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ <br> | कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ <br> | ||
22:25, 10 अगस्त 2009 का अवतरण
आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ
चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ
आँखों से पोंछने से लगा आँच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ