भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रकृति जितना देती है / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
 
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
 +
|अनुवादक=
 +
|संग्रह=
 
}}
 
}}
<poem>जहाँ हँसे हैं लाल फूल, वहाँ
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
जहाँ हँसे हैं लाल फूल, वहाँ
 
नीले भी अक्सर खिल जाते
 
नीले भी अक्सर खिल जाते
 
निश्छलता कितनी प्रकॄति में
 
निश्छलता कितनी प्रकॄति में
पंक्ति 24: पंक्ति 28:
  
 
१३ नवम्बर ०८
 
१३ नवम्बर ०८
 
 
</poem>
 
</poem>

14:18, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

जहाँ हँसे हैं लाल फूल, वहाँ
नीले भी अक्सर खिल जाते
निश्छलता कितनी प्रकॄति में
रंग दूर के घुल-मिल जाते!

सुघड़ पेड़ के पास खड़े
मुँह बाये, तकते नहीं अघाते
कितने सुकुमार ललायित अंकुर
बूँद स्नेह की पा सिंच जाते!

और कभी संध्या प्रभात मिल
दोनों जब खुल के गपियाते
सूरज दादा देर गये तक
रिरियाते छुट्टी ना पाते!

कभी पवन का बैग खोलते
कभी बरखा की बूंदों के खाते,
काश! प्रकृति जितना देती है
अंश मात्र उसको लौटाते!

१३ नवम्बर ०८