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<Poem>
युद्ध के बाअबाद
पद्मिनी की जगह
मिलती है मुट्ठी भर राख
सिकनर सिकन्दर को जाना प़अता पड़ता है खाली हाथ
विलाप करना पड़ता है प्रभु को
अपने ही कोटि-कोटि शवों पर
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