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इतिहास की आशा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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10:32, 20 अगस्त 2009
<Poem>
युद्ध के
बाअ
बाद
पद्मिनी की जगह
मिलती है मुट्ठी भर राख
सिकनर
सिकन्दर
को जाना
प़अता
पड़ता
है खाली हाथ
विलाप करना पड़ता है प्रभु को
अपने ही कोटि-कोटि शवों पर
अनिल जनविजय
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