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"मशवरा: दो / शीन काफ़ निज़ाम" के अवतरणों में अंतर
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12:35, 22 अगस्त 2009 का अवतरण
बहुत पुरानी
हमारे रिश्तों की सब क़बाएँ<ref>वस्त्र (कबा का बहुवचन)</ref>
जगह-जगह से
इसीलिए सब मसक रही हैं
उतारें इन को!?
प्राने कपड़ों के गंदे गट्ठर में
बन्द कर दें
कभी कोई-
सब फ़टे-पुराने हमारे कपड़े
ख़रीद लेगा
और इन के बदले
चमकता-सा कुछ थमाए शायद...
शब्दार्थ
<references/>