भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक बूँद / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (एक बूँद / अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का नाम बदलकर एक बूँद / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ कर दिया ) |
|
(कोई अंतर नहीं)
|
00:36, 10 अगस्त 2010 का अवतरण
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?
देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?
या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,
चू पडूँगी या कमल के फूल में ?
बह गयी उस काल एक ऐसी हवा
वह समुन्दर ओर आई अनमनी
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।
लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।