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वक़्त की शाखों से  
 
गिरते हैं पत्ते  
 
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दिनों के  
 
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आज, कल, परसों  
 
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हर पत्ते के साथ ही  
 
हर पत्ते के साथ ही  
 
 
मुरझाता जाता है मन  
 
मुरझाता जाता है मन  
 
 
  
 
शाखें नहीं बदलती  
 
शाखें नहीं बदलती  
 
 
नहीं बदलते सपने  
 
नहीं बदलते सपने  
 
 
कुम्हलाता है मन  
 
कुम्हलाता है मन  
 
 
  
 
इन टहनियों के सूखने  
 
इन टहनियों के सूखने  
 
 
और नयी टहनियों के पनपने तक  
 
और नयी टहनियों के पनपने तक  
 
 
गिनने हैं पत्ते  
 
गिनने हैं पत्ते  
 
 
गुजारने हैं दिन  
 
गुजारने हैं दिन  
 
 
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20:44, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

वक़्त की शाखों से
गिरते हैं पत्ते
दिनों के
आज, कल, परसों

हर पत्ते के साथ ही
मुरझाता जाता है मन

शाखें नहीं बदलती
नहीं बदलते सपने
कुम्हलाता है मन

इन टहनियों के सूखने
और नयी टहनियों के पनपने तक
गिनने हैं पत्ते
गुजारने हैं दिन