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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''सद्यःस्नाता<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''दिल्ली होने से तो अच्छा है<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अशोक वाजपेयी]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विनय दुबे]]</td>
 
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पानी
+
मैं पहाड़ देखता हूँ
छूता है उसे
+
तो पहाड़ हो जाता हूँ
उसकी त्वचा के उजास को
+
उसके अंगों की प्रभा को –
+
  
पानी
+
पेड़ देखता हूँ
ढलकता है उसकी
+
तो पेड़ हो जाता हूँ
उपत्यकाओं शिखरों में से –
+
  
पानी
+
नदी देखता हूँ
उसे घेरता है
+
तो नदी हो जाता हूँ
चूमता है
+
  
पानी सकुचाता
+
आकाश देखता हूँ
लजाता
+
तो आकाश हो जाता हूँ
गरमाता है
+
 
पानी बावरा हो जाता है
+
दिल्ली की तरफ़ तो मैं
 +
भूलकर भी नहीं देखता हूँ
 +
दिल्ली होने से तो अच्छा है
 +
अपनी रूखी-सूखी खाकर
 +
यहीं भोपाल में पड़ा रहूँ
  
पानी के मन में
 
उसके तन के
 
अनेक संस्मरण हैं।
 
 
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21:07, 14 सितम्बर 2009 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: दिल्ली होने से तो अच्छा है
  रचनाकार: विनय दुबे
मैं पहाड़ देखता हूँ
तो पहाड़ हो जाता हूँ

पेड़ देखता हूँ
तो पेड़ हो जाता हूँ

नदी देखता हूँ
तो नदी हो जाता हूँ

आकाश देखता हूँ
तो आकाश हो जाता हूँ

दिल्ली की तरफ़ तो मैं
भूलकर भी नहीं देखता हूँ
दिल्ली होने से तो अच्छा है
अपनी रूखी-सूखी खाकर
यहीं भोपाल में पड़ा रहूँ