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02:48, 28 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
अब उदय भान और रानी केतकी दोनों मिले।
आस के जो फूल कुम्हलाये हुए थे फिर खिले।
चैन होता ही न था जिस एक आसन एक बिन,
रहने-सहने से लगे आपस में अपने रात-दिन।
ऐ खिलाड़ी, यह बहुत था कुछ नहीं थोड़ा हुआ,
आन कर आपस में जो दोनों के गठजोड़ा हुआ।
चाह के डूबे हुए, ऐ मेरे दाता, सब तिरें,
दिन फिरे जैसे इन्हीं के वैसे अपने दिन फिरें।