"साक़िब लखनवी / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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मिर्ज़ा ज़ाकिर हुसेन ‘साक़िब’ का जन्म २ जनवरी १८६९ को आगरे में हुआ। अभी छः माह के थे कि आपके पिता आगरा छोड़कर लखनऊ चले आये और वहीं बस गए। बचपन से ही शायरी का शौक था पर बुज़ुर्गों के डर से मन ही मन घुटने लगे। आखिर १२ वर्ष की उम्र में कुछ हिम्मत समेट कर मुशायरों के मिसरा तरहों पर ग़ज़ल लिखते और सहपाठियों को मुशायरों में पढ़ने को देते। इस तरह उन्हें पता चलता कि उनके लेखन को किस शायर ने सराहा। यही उनके लिए आत्मसंतोष का विषय था। | मिर्ज़ा ज़ाकिर हुसेन ‘साक़िब’ का जन्म २ जनवरी १८६९ को आगरे में हुआ। अभी छः माह के थे कि आपके पिता आगरा छोड़कर लखनऊ चले आये और वहीं बस गए। बचपन से ही शायरी का शौक था पर बुज़ुर्गों के डर से मन ही मन घुटने लगे। आखिर १२ वर्ष की उम्र में कुछ हिम्मत समेट कर मुशायरों के मिसरा तरहों पर ग़ज़ल लिखते और सहपाठियों को मुशायरों में पढ़ने को देते। इस तरह उन्हें पता चलता कि उनके लेखन को किस शायर ने सराहा। यही उनके लिए आत्मसंतोष का विषय था। |
21:56, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
मिर्ज़ा ज़ाकिर हुसेन ‘साक़िब’ का जन्म २ जनवरी १८६९ को आगरे में हुआ। अभी छः माह के थे कि आपके पिता आगरा छोड़कर लखनऊ चले आये और वहीं बस गए। बचपन से ही शायरी का शौक था पर बुज़ुर्गों के डर से मन ही मन घुटने लगे। आखिर १२ वर्ष की उम्र में कुछ हिम्मत समेट कर मुशायरों के मिसरा तरहों पर ग़ज़ल लिखते और सहपाठियों को मुशायरों में पढ़ने को देते। इस तरह उन्हें पता चलता कि उनके लेखन को किस शायर ने सराहा। यही उनके लिए आत्मसंतोष का विषय था।
१८८७ से १८९१ ई. तक ‘साक़िब’ को अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए आगरा में रहना पड़ा। वहीं उन्हे मोमिन हुसेन खाँ ‘सफ़ी’ जैसे योग्य उस्ताद मिले जिन्हें उर्दू, फ़ारसी, अरबी में महारथ हासिल थी। साक़िब जितनी उच्च कोटि की ग़ज़ल लिखते थे, उतनी ही हृदयस्पर्शी आवाज़ में पढ़ते भी थे।
१९०६ ई. में यानि २७ वर्ष की आयु में साक़िब कलकत्ते गए और वहां सिफ़ारितखानए-ईरान में दो वर्ष प्राइवेट सेक्रेटरी रहे। १९०८ई. में राजा-महमूदाबाद ने ५० रुपए की मासिक पेंशन पर उन्हें बुला लिया जिससे उनका जीवन आनन्दपूर्वक बीत गया। उनका निधन २२ नवम्बर १९४६ई. को हुआ।