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हाइकु / ज्ञानेन्द्रपति

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काला झींगुर
नाम दुलारी
दुखों की दुलारी है
जमादारिन
पनही नहीं
पाँव में, गले में
पगहा है भारी
 
मेघ बोझिल
मन भर मौसम
छूटा अकेला
</poem>
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