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"विवेकानंद दोहे / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'" के अवतरणों में अंतर

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साँस-साँस में राष्ट्रहित, शब्द-शब्द में ज्ञान।
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राष्ट्रवेदिका पर किए, अर्पित तन मन प्राण।।
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सत्य और संस्कृति हुए, पाकर तुम्हें महान।
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कदम मिलाकर चल पड़े, धर्म और विज्ञान।।
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देव संस्कृति का किया, तप-तप कर उत्थान।
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करता है दिककाल भी, ॠषि तेरा जयगान।।
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अनथक यात्री ने कभी, लिया नहीं विश्राम।
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दिशा-दिशा के वक्ष पर, लिखा तुम्हारा नाम।।
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रोम-रोम पुलकित हुआ, गाकर दिव्य चरित्र।
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जन्म तुम्हें देकर हुई, भारत भूमि पवित्र।।
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संत विवेकानंद तुम, शुभ-संस्कृति का कोष।
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गुँजा दिया इस सृष्टि में, भारत का जय घोष।।
 
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18:50, 15 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

उठो, जगो, आगे बढ़ो, पाओ जीवन-साध्य।
तुमने कहा कि राष्ट्र ही, एकमेव आराध्य।।

साँस-साँस में राष्ट्रहित, शब्द-शब्द में ज्ञान।
राष्ट्रवेदिका पर किए, अर्पित तन मन प्राण।।

सत्य और संस्कृति हुए, पाकर तुम्हें महान।
कदम मिलाकर चल पड़े, धर्म और विज्ञान।।

देव संस्कृति का किया, तप-तप कर उत्थान।
करता है दिककाल भी, ॠषि तेरा जयगान।।

अनथक यात्री ने कभी, लिया नहीं विश्राम।
दिशा-दिशा के वक्ष पर, लिखा तुम्हारा नाम।।

रोम-रोम पुलकित हुआ, गाकर दिव्य चरित्र।
जन्म तुम्हें देकर हुई, भारत भूमि पवित्र।।

संत विवेकानंद तुम, शुभ-संस्कृति का कोष।
गुँजा दिया इस सृष्टि में, भारत का जय घोष।।