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बंधक सुबहें | बंधक सुबहें | ||
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गिरवी अपनी | गिरवी अपनी | ||
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साँझ दुपहरी है । | साँझ दुपहरी है । | ||
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बड़ी देर तक रात व्यथा से | बड़ी देर तक रात व्यथा से | ||
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कर सोये संवाद, | कर सोये संवाद, | ||
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रोटी की चिंता ने छीना | रोटी की चिंता ने छीना | ||
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प्रातः का अवसाद, | प्रातः का अवसाद, | ||
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भूख मीत है जिससे | भूख मीत है जिससे | ||
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अपनी छनती गहरी है । | अपनी छनती गहरी है । | ||
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रक़म सैकड़ा लिया कभी था | रक़म सैकड़ा लिया कभी था | ||
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की उसकी भरपाई, | की उसकी भरपाई, | ||
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सात महीने किया मज़ूरी | सात महीने किया मज़ूरी | ||
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तब जाकर हो पाई, | तब जाकर हो पाई, | ||
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कुछ बोलें तो अपने हिस्से | कुछ बोलें तो अपने हिस्से | ||
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कोर्ट कचहरी है । | कोर्ट कचहरी है । | ||
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टूटी मड़ई जिसको अपना | टूटी मड़ई जिसको अपना | ||
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घर कह लेते हैं, | घर कह लेते हैं, | ||
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किसी तरह कुछ ओढ़-बिछाकर | किसी तरह कुछ ओढ़-बिछाकर | ||
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हम रह लेते हैं, | हम रह लेते हैं, | ||
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जीवन जैसे टूटी-फूटी | जीवन जैसे टूटी-फूटी | ||
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एक मसहरी है । | एक मसहरी है । | ||
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मालिक लोगों के कहने पर | मालिक लोगों के कहने पर | ||
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देते रहे अँगूठा, | देते रहे अँगूठा, | ||
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वक़्त पड़ा तो हम ही साबित | वक़्त पड़ा तो हम ही साबित | ||
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हो जाते हैं झूठा, | हो जाते हैं झूठा, | ||
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निरर्थक है फ़रियाद | निरर्थक है फ़रियाद | ||
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व्यवस्था अंधी-बहरी है । | व्यवस्था अंधी-बहरी है । | ||
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23:40, 15 सितम्बर 2009 का अवतरण
बंधक सुबहें
गिरवी अपनी
साँझ दुपहरी है ।
बड़ी देर तक रात व्यथा से
कर सोये संवाद,
रोटी की चिंता ने छीना
प्रातः का अवसाद,
भूख मीत है जिससे
अपनी छनती गहरी है ।
रक़म सैकड़ा लिया कभी था
की उसकी भरपाई,
सात महीने किया मज़ूरी
तब जाकर हो पाई,
कुछ बोलें तो अपने हिस्से
कोर्ट कचहरी है ।
टूटी मड़ई जिसको अपना
घर कह लेते हैं,
किसी तरह कुछ ओढ़-बिछाकर
हम रह लेते हैं,
जीवन जैसे टूटी-फूटी
एक मसहरी है ।
मालिक लोगों के कहने पर
देते रहे अँगूठा,
वक़्त पड़ा तो हम ही साबित
हो जाते हैं झूठा,
निरर्थक है फ़रियाद
व्यवस्था अंधी-बहरी है ।