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निशा को, धो देता राकेश
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चाँदनी में जब अलकें खोल,
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कली से कहता था मधुमास
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’बता दो मधुमदिरा का मोल’;
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भटक जाता था पागल बात
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धूल में तुहिन कणों के हार;
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सिखाने जीवन का संगीत
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तभी तुम आये थे इस पार।
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00:06, 20 सितम्बर 2009 का अवतरण

निशा को, धो देता राकेश
चाँदनी में जब अलकें खोल,
कली से कहता था मधुमास
’बता दो मधुमदिरा का मोल’;

भटक जाता था पागल बात
धूल में तुहिन कणों के हार;
सिखाने जीवन का संगीत
तभी तुम आये थे इस पार।