भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक कुंज / बाबू महेश नारायण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबू महेश नारायण }} {{KKCatKavita‎}} <poem> :::एक कुंज, :::बहुत गुं...)
 
छो ("एक कुंज / बाबू महेश नारायण" सुरक्षित कर दिया: कृपया इसमें कोई बदलाव न करें। यह पुरानी हिन्दी का नम)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:27, 20 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक कुंज,
बहुत गुंज,
पेड़ों से घिरा था
झरने के बग़ल में
बिजली की चमक भी न पहुँचती थी वहाँ तक
ऐसा वह घिरा था
जस दीप हो जल में
पानी की टपक राह भला पावे कहाँ तक।