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Kavita Kosh से
मुस्कराता था, खिलाती
अंक में तुझको पवन !
खिल गया जब पूर्ण तू-
लुब्ध मधु के हेतु मँडराते
लगे आने भ्रमर !
स्निग्ध किरणें चन्द्र की-
लाल अपना राग तुझपर
प्रात बरसाता नहीं।
जिस पवन ने अंक में-
ले प्यार था तुझको किया,
तीव्र झोंके से सुला-
उसने तुझे भू पर दिया।
कर दिया मधु और सौरभ
दान सारा एक दिन,
किन्तु रोता कौन है
तेरे लिए दीनी सुमन?
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