"मुझे पुकार लो / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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इसीलिए खड़ा रहा | इसीलिए खड़ा रहा | ||
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कि तुम मुझे पुकार लो! | कि तुम मुझे पुकार लो! | ||
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ज़मीन है न बोलती, | ज़मीन है न बोलती, | ||
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न आसमान बोलता, | न आसमान बोलता, | ||
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जहान देखकर मुझे | जहान देखकर मुझे | ||
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नहीं ज़बान खोलता, | नहीं ज़बान खोलता, | ||
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नहीं जगह कहीं जहाँ | नहीं जगह कहीं जहाँ | ||
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न अजनबी गिना गया, | न अजनबी गिना गया, | ||
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कहाँ-कहाँ न फिर चुका | कहाँ-कहाँ न फिर चुका | ||
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दिमाग-दिल टटोलता; | दिमाग-दिल टटोलता; | ||
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कहाँ मनुष्य है कि जो | कहाँ मनुष्य है कि जो | ||
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उमीद छोड़कर जिया, | उमीद छोड़कर जिया, | ||
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इसीलिए अड़ा रहा | इसीलिए अड़ा रहा | ||
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कि तुम मुझे पुकार लो; | कि तुम मुझे पुकार लो; | ||
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इसीलिए खड़ा रहा | इसीलिए खड़ा रहा | ||
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कि तुम मुझे पुकार लो; | कि तुम मुझे पुकार लो; | ||
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तिमिर-समुद्र कर सकी | तिमिर-समुद्र कर सकी | ||
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न पार नेत्र की तरी, | न पार नेत्र की तरी, | ||
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विनष्ट स्वप्न से लदी, | विनष्ट स्वप्न से लदी, | ||
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विषाद याद से भरी, | विषाद याद से भरी, | ||
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न कूल भूमि का मिला, | न कूल भूमि का मिला, | ||
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न कोर भेर की मिली, | न कोर भेर की मिली, | ||
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न कट सकी, न घट सकी | न कट सकी, न घट सकी | ||
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विरह-घिरी विभावरी; | विरह-घिरी विभावरी; | ||
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कहाँ मनुष्य है जिसे | कहाँ मनुष्य है जिसे | ||
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कमी खली न प्यार की, | कमी खली न प्यार की, | ||
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इसीलिए खड़ा रहा | इसीलिए खड़ा रहा | ||
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कि तुम मुझे दुलार लो! | कि तुम मुझे दुलार लो! | ||
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इसीलिए खड़ा रहा | इसीलिए खड़ा रहा | ||
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कि तुम मुझे पुकार लो! | कि तुम मुझे पुकार लो! | ||
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उजाड़ से लगा चुका | उजाड़ से लगा चुका | ||
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उमीद मैं बाहर की, | उमीद मैं बाहर की, | ||
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निदाघ से उमीद की, | निदाघ से उमीद की, | ||
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वसंत से बयार की, | वसंत से बयार की, | ||
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मरुस्थली मरीचिका | मरुस्थली मरीचिका | ||
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सुधामयी मुझे लगी, | सुधामयी मुझे लगी, | ||
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अँगार से लगा चुका | अँगार से लगा चुका | ||
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उमीद मैं तुषार की; | उमीद मैं तुषार की; | ||
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कहाँ मनुष्य है जिसे | कहाँ मनुष्य है जिसे | ||
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न भूल शूल-सी गड़ी, | न भूल शूल-सी गड़ी, | ||
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इसीलिए खड़ा रहा | इसीलिए खड़ा रहा | ||
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कि भूल तुम सुधार लो! | कि भूल तुम सुधार लो! | ||
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इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो! | इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो! | ||
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पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो! | पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो! | ||
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21:39, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
ज़मीन है न बोलती,
न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे
नहीं ज़बान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ
न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका
दिमाग-दिल टटोलता;
कहाँ मनुष्य है कि जो
उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो;
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो;
तिमिर-समुद्र कर सकी
न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी,
विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला,
न कोर भेर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी
विरह-घिरी विभावरी;
कहाँ मनुष्य है जिसे
कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे दुलार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
उजाड़ से लगा चुका
उमीद मैं बाहर की,
निदाघ से उमीद की,
वसंत से बयार की,
मरुस्थली मरीचिका
सुधामयी मुझे लगी,
अँगार से लगा चुका
उमीद मैं तुषार की;
कहाँ मनुष्य है जिसे
न भूल शूल-सी गड़ी,
इसीलिए खड़ा रहा
कि भूल तुम सुधार लो!
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!