"कौन तुम हो? / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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ले प्रलय की नींद सोया | ले प्रलय की नींद सोया | ||
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जिन दृगों में था अँधेरा, | जिन दृगों में था अँधेरा, | ||
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आज उनमें ज्योति बनकर | आज उनमें ज्योति बनकर | ||
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ला रही हो तुम सवेरा, | ला रही हो तुम सवेरा, | ||
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सृष्टि की पहली उषा की | सृष्टि की पहली उषा की | ||
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यदि नहीं मुसकान तुम हो, | यदि नहीं मुसकान तुम हो, | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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आज परिचय की मधुर | आज परिचय की मधुर | ||
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मुसकान दुनिया दे रही है, | मुसकान दुनिया दे रही है, | ||
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आज सौ-सौ बात के | आज सौ-सौ बात के | ||
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संकेत मुझसे ले रही है | संकेत मुझसे ले रही है | ||
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विश्व से मेरी अकेली | विश्व से मेरी अकेली | ||
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यदि नहीं पहचान तुम हो, | यदि नहीं पहचान तुम हो, | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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हाय किसकी थी कि मिट्टी | हाय किसकी थी कि मिट्टी | ||
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मैं मिला संसार मेरा, | मैं मिला संसार मेरा, | ||
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हास किसका है कि फूलों- | हास किसका है कि फूलों- | ||
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सा खिला संसार मेरा, | सा खिला संसार मेरा, | ||
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नाश को देती चुनौती | नाश को देती चुनौती | ||
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यदी नहीं निर्माण तुम हो, | यदी नहीं निर्माण तुम हो, | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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मैं पुरानी यादगारों | मैं पुरानी यादगारों | ||
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से विदा भी ले न पाया | से विदा भी ले न पाया | ||
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था कि तुमने ला नए ही | था कि तुमने ला नए ही | ||
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लोक में मुझको बसाया, | लोक में मुझको बसाया, | ||
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यदि नहीं तूफ़ान तुम हो, | यदि नहीं तूफ़ान तुम हो, | ||
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जो नहीं उठकर ठहरता | जो नहीं उठकर ठहरता | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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तुम किसी बुझती चिता की | तुम किसी बुझती चिता की | ||
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जो लुकाठी खींच लाती | जो लुकाठी खींच लाती | ||
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हो, उसी से ब्याह-मंडप | हो, उसी से ब्याह-मंडप | ||
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के तले दीपक जलाती, | के तले दीपक जलाती, | ||
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मृत्यु पर फिर-फिर विजय की | मृत्यु पर फिर-फिर विजय की | ||
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यदि नहीं दृढ़ आन तुम हो, | यदि नहीं दृढ़ आन तुम हो, | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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यह इशारे हैं कि जिन पर | यह इशारे हैं कि जिन पर | ||
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काल ने भी चाल छोड़ी, | काल ने भी चाल छोड़ी, | ||
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लौट मैं आया अगर तो | लौट मैं आया अगर तो | ||
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कौन-सी सौगंध तोड़ी, | कौन-सी सौगंध तोड़ी, | ||
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सुन जिसे रुकना असंभव | सुन जिसे रुकना असंभव | ||
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यदि नहीं आह्वान तुम हो, | यदि नहीं आह्वान तुम हो, | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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कर परिश्रम कौन तुमको | कर परिश्रम कौन तुमको | ||
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आज तक अपना सका है, | आज तक अपना सका है, | ||
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खोजकर कोई तुम्हारा | खोजकर कोई तुम्हारा | ||
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कब पता भी पा सका है, | कब पता भी पा सका है, | ||
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देवताओं का अनिश्चित | देवताओं का अनिश्चित | ||
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यदि नहीं वरदान तुम हो, | यदि नहीं वरदान तुम हो, | ||
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कौन तुम हो? | कौन तुम हो? | ||
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21:43, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
ले प्रलय की नींद सोया
जिन दृगों में था अँधेरा,
आज उनमें ज्योति बनकर
ला रही हो तुम सवेरा,
सृष्टि की पहली उषा की
यदि नहीं मुसकान तुम हो,
कौन तुम हो?
आज परिचय की मधुर
मुसकान दुनिया दे रही है,
आज सौ-सौ बात के
संकेत मुझसे ले रही है
विश्व से मेरी अकेली
यदि नहीं पहचान तुम हो,
कौन तुम हो?
हाय किसकी थी कि मिट्टी
मैं मिला संसार मेरा,
हास किसका है कि फूलों-
सा खिला संसार मेरा,
नाश को देती चुनौती
यदी नहीं निर्माण तुम हो,
कौन तुम हो?
मैं पुरानी यादगारों
से विदा भी ले न पाया
था कि तुमने ला नए ही
लोक में मुझको बसाया,
यदि नहीं तूफ़ान तुम हो,
जो नहीं उठकर ठहरता
कौन तुम हो?
तुम किसी बुझती चिता की
जो लुकाठी खींच लाती
हो, उसी से ब्याह-मंडप
के तले दीपक जलाती,
मृत्यु पर फिर-फिर विजय की
यदि नहीं दृढ़ आन तुम हो,
कौन तुम हो?
यह इशारे हैं कि जिन पर
काल ने भी चाल छोड़ी,
लौट मैं आया अगर तो
कौन-सी सौगंध तोड़ी,
सुन जिसे रुकना असंभव
यदि नहीं आह्वान तुम हो,
कौन तुम हो?
कर परिश्रम कौन तुमको
आज तक अपना सका है,
खोजकर कोई तुम्हारा
कब पता भी पा सका है,
देवताओं का अनिश्चित
यदि नहीं वरदान तुम हो,
कौन तुम हो?