'''आस्था -२'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /poem> हमारे बीच बहुत कुछ टूट गया है<br />हमारे भीतर बहुत कुछ छूट गया है<br />कैसे दर्द नें तराश कर बुत बना दिया हमें<br />और तनहाई हमसे लिपट कर<br />हमारे दिलों की हथेलियाँ मिलानें को तत्पर है<br />पत्थर फिर बोलेंगे<br />ये कैसी आस्था?<br /poem>