भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो पोज़ / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
 
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार
+
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यन्त कुमार
 
}}
 
}}
  

23:38, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

सद्यस्नात तुम
जब आती हो
मुख कुन्तलों से ढँका रहता है
बहुत बुरे लगते हैं वे क्षण जब
राहू से चाँद ग्रसा रहता है ।

पर जब तुम
केश झटक देती हो अनायास
तारों सी बूँदें
बिखर जाती हैं आसपास
मुक्त हो जाता है चाँद
तब बहुत भला लगता है ।


सद्यस्नात=इसी समय नहाई हुई ; कुन्तल=केश