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"आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
  
 
मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला,
 
मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला,
 
 
मैं नहीं पहले दिनों का प्‍यार भूला,
 
मैं नहीं पहले दिनों का प्‍यार भूला,
 
 
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो;
 
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो;
 
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
  
 
हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ,
 
हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ,
 
 
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण,
 
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण,
 
 
स्‍वर्ग का उल्‍लास, पर भर तुम हँसो तो;
 
स्‍वर्ग का उल्‍लास, पर भर तुम हँसो तो;
 
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
  
 
मौन के भी कंठ में मैं स्‍वर भरूँगा,
 
मौन के भी कंठ में मैं स्‍वर भरूँगा,
 
 
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा,
 
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा,
 
 
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो;
 
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो;
 
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
  
 
रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा,
 
रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा,
 
 
जग उषा-मुसकान-मधु से स्‍नात होगा,
 
जग उषा-मुसकान-मधु से स्‍नात होगा,
 
 
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो;
 
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो;
 
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
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21:42, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।

मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला,
मैं नहीं पहले दिनों का प्‍यार भूला,
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।

हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ,
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण,
स्‍वर्ग का उल्‍लास, पर भर तुम हँसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।

मौन के भी कंठ में मैं स्‍वर भरूँगा,
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा,
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।

रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा,
जग उषा-मुसकान-मधु से स्‍नात होगा,
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।