"क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | क्या | + | क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? |
− | क्या | + | क्या करूँ? |
मैं दुखी जब-जब हुआ | मैं दुखी जब-जब हुआ | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
किन्तु इस आभार का अब | किन्तु इस आभार का अब | ||
हो उठा है बोझ भारी; | हो उठा है बोझ भारी; | ||
− | क्या | + | क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? |
− | क्या | + | क्या करूँ? |
एक भी उच्छ्वास मेरा | एक भी उच्छ्वास मेरा | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
सत्य को मूंदे रहेगी | सत्य को मूंदे रहेगी | ||
शब्द की कब तक पिटारी? | शब्द की कब तक पिटारी? | ||
− | क्या | + | क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? |
− | क्या | + | क्या करूँ? |
कौन है जो दूसरों को | कौन है जो दूसरों को | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
क्यों हमारे बीच धोखे | क्यों हमारे बीच धोखे | ||
का रहे व्यापार जारी? | का रहे व्यापार जारी? | ||
− | क्या | + | क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? |
− | क्या | + | क्या करूँ? |
क्यों न हम लें मान, हम हैं | क्यों न हम लें मान, हम हैं | ||
पंक्ति 46: | पंक्ति 46: | ||
तुम दुखी हो तो सुखी मैं | तुम दुखी हो तो सुखी मैं | ||
विश्व का अभिशाप भारी! | विश्व का अभिशाप भारी! | ||
− | क्या | + | क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? |
− | क्या | + | क्या करूँ? |
</poem> | </poem> |
19:08, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनो ने निभाई,
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
कौन है जो दूसरों को
दु:ख अपना दे सकेगा?
कौन है जो दूसरे से
दु:ख उसका ले सकेगा?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला,
दुख नहीं बंटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता;
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी!
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?