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"आते कैसे सूने पल / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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आते कैसे सूने पल | आते कैसे सूने पल | ||
− | जीवन में ये सूने पल | + | जीवन में ये सूने पल! |
− | जब लगता सब | + | जब लगता सब विशृंखल, |
− | तृण, तरु, पृथ्वी, | + | तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल। |
− | + | :खो देती उर की वीणा | |
− | खो देती उर की वीणा | + | :झंकार मधुर जीवन की, |
− | झंकार मधुर जीवन की, | + | :बस साँसों के तारों में |
− | बस साँसों के तारों में | + | :सोती स्मृति सूनेपन की। |
− | सोती स्मृति सूनेपन | + | |
− | + | ||
बह जाता बहने का सुख, | बह जाता बहने का सुख, | ||
लहरों का कलरव, नर्तन, | लहरों का कलरव, नर्तन, | ||
बढ़ने की अति-इच्छा में | बढ़ने की अति-इच्छा में | ||
− | जाता जीवन से | + | जाता जीवन से जीवन। |
− | + | :आत्मा है सरिता के भी, | |
− | आत्मा है सरिता के भी | + | :जिससे सरिता है सरिता; |
− | जिससे सरिता है सरिता; | + | :जल जल है, लहर लहर रे, |
− | जल | + | :गति गति, सृति सृति चिर-भरिता। |
− | गति | + | क्या यह जीवन? सागर में |
− | + | जल-भार मुखर भर देना! | |
− | क्या यह जीवन ? सागर में | + | कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा- |
− | जल भार मुखर भर देना ! | + | ब्रीड़ा से तनिक ने लेना? |
− | कुसुमित पुलिनों की | + | :सागर-संगम में है सुख, |
− | ब्रीड़ा से तनिक ने लेना | + | :जीवन की गति में भी लय; |
+ | मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण | ||
+ | जीवन-लय से हों मधुमय। | ||
− | + | रचनाकाल: जनवरी’ १९३२ | |
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12:54, 10 मई 2010 का अवतरण
आते कैसे सूने पल
जीवन में ये सूने पल!
जब लगता सब विशृंखल,
तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल।
खो देती उर की वीणा
झंकार मधुर जीवन की,
बस साँसों के तारों में
सोती स्मृति सूनेपन की।
बह जाता बहने का सुख,
लहरों का कलरव, नर्तन,
बढ़ने की अति-इच्छा में
जाता जीवन से जीवन।
आत्मा है सरिता के भी,
जिससे सरिता है सरिता;
जल जल है, लहर लहर रे,
गति गति, सृति सृति चिर-भरिता।
क्या यह जीवन? सागर में
जल-भार मुखर भर देना!
कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा-
ब्रीड़ा से तनिक ने लेना?
सागर-संगम में है सुख,
जीवन की गति में भी लय;
मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण
जीवन-लय से हों मधुमय।
रचनाकाल: जनवरी’ १९३२