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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''दीपावली <br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''परसाई जी की बात <br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शिवप्रसाद जोशी]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[नरेश सक्सेना]]</td>
 
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अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी
+
पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में  
काट लूंगी तुम्हारी उंगलियाँ
+
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए
खा जाऊंगी तुम्हें
+
मैंने सुनाई अपनी कविता
समझे तुम
+
और पूछा
अपने सिर से मेरा सिर न टकराओ
+
क्या इस पर ईनाम मिल सकता है  
ये बताओ कब आओगे
+
"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है"
कहाँ हो तुम
+
सुनकर मैं सन्न रह गया
और ये हँस क्यों रहे हो बेकार में
+
क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता
तुमने एक उपहार भेजा अच्छा लगा
+
की अध्यक्षता करने जा रहे थे
तुमने एक पोशाक भेजी अच्छी लगी
+
 
लेकिन तुम इतनी दूर क्यों हो
+
आज चारों तरफ़ सुनता हूँ
इतने पास हो और फ़ौरन क्यों नहीं चले आते
+
वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से  
ये कम्प्यूटर तुम्हारा ही तो है
+
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
जहाज़ के टायर नहीं होते
+
लेते हैं हाथों-हाथ
और वे चलते हैं ज़मीन पर
+
सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता
मेरी गुड़िया का आज जन्मदिन है
+
 
गणेश को सारे लड्डू न खिलाओ माँ
+
तो शक होने लगता है
मुझे भी खाना है
+
परसाई जी की बात पर नहीं  
और अब बाबा से तो मैं नहीं करूंगी बात
+
अपनी कविता पर
बस यह कहकर हटती है
+
/pre>
बेटी
+
पिता से इंटरनेट टेलीफ़ोनी करती हुई
+
एक अचरज और उलार में निहारती हुई
+
इतने क़रीब उस दुष्ट मनुष्य को
+
और जो है इतना दूर
+
मैं गई फुलझड़ी जलाने
+
मैं गई अनार फोड़ने
+
बाबा इनकी रंगतों में मेरा अफ़सोस देखना
+
मैं किससे कहूँ मन की बात
+
तुम्हें मैं छोड़ूंगी नहीं आना तुम।
+
</pre>
+
 
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22:40, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: परसाई जी की बात
  रचनाकार: नरेश सक्सेना
पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में 
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए 
मैंने सुनाई अपनी कविता 
और पूछा 
क्या इस पर ईनाम मिल सकता है 
"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है" 
सुनकर मैं सन्न रह गया 
क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता 
की अध्यक्षता करने जा रहे थे 

आज चारों तरफ़ सुनता हूँ 
वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से 
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त 
लेते हैं हाथों-हाथ 
सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता 

तो शक होने लगता है 
परसाई जी की बात पर नहीं 
अपनी कविता पर
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