भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देश के सैनिकों से / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशर…)
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
परंतु वीर हार मानते कभी?
 
परंतु वीर हार मानते कभी?
  
 +
निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
 +
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
 +
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
 +
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।
  
 +
जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
 +
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
 +
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
 +
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
 +
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।
 
</poem>
 
</poem>

14:02, 30 अक्टूबर 2009 का अवतरण

कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर हार मानते कभी?

निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।

जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।