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"चैत का गीत / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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परती खेत ‘अबके असाढ में’
 
परती खेत ‘अबके असाढ में’
 
:जुतेंगे औ’ ।  
 
:जुतेंगे औ’ ।  
घटती है, बढती है
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घटती है, बढ़ती है
मुड़ती है, चढती है-
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मुड़ती है, चढ़ती है-
 
दीवट, ओसारे में, की
 
दीवट, ओसारे में, की
 
:जागती-मचलती लौ ।  
 
:जागती-मचलती लौ ।  

03:14, 4 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

चैत में कटी है जौ ।
मेहनत ने किया काम,
बिकी फ़सल, लगे दाम्।
जुटे खरीदार, साहूकार
मिले रुपये सौ ।
नन्हे जेठुअई धान्।
खड़े हुए सीना तान
परती खेत ‘अबके असाढ में’
जुतेंगे औ’ ।
घटती है, बढ़ती है
मुड़ती है, चढ़ती है-
दीवट, ओसारे में, की
जागती-मचलती लौ ।
फूस का बड़ा छप्पर
खाली है, सोयेंगे सब बाहर;
बछिया से तनिक परे
सहन में बँधी है गौ ।
मुखिया, सरपच, लोग ।-
जुटा नहर पार जोग :
चंग और डफ बाजे
घुँघरू में आई रौ ।
नकलें औ’ राग-रंग
देख सभी हुए दंग
आयी जब सुध , जाना
पूरब में फटती पौ ।