भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"योगफल / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अज्ञेय | |रचनाकार=अज्ञेय | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे / अज्ञेय |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित | यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित | ||
जीवित भी हम रह न सके। | जीवित भी हम रह न सके। | ||
+ | |||
+ | '''जेनेवा, 12 सितम्बर, 1955''' | ||
</poem> | </poem> |
17:24, 8 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
सुख मिला :
उसे हम कह न सके।
दुख हुआ:
उसे हम सह न सके।
संस्पर्श बृहत का उतरा सुरसरि-सा :
हम बह न सके ।
यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित
जीवित भी हम रह न सके।
जेनेवा, 12 सितम्बर, 1955