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"हरिजू की आरती बनी / आरती" के अवतरणों में अंतर

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हरिजू की आरती बनी।
 
हरिजू की आरती बनी।
अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी॥ हरिजू ..
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अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी॥  
  
 
कच्छप अध आसन अनूप अति, डांडी सहस फनी।
 
कच्छप अध आसन अनूप अति, डांडी सहस फनी।
महि सराव, सप्त सागर घृत-बाती सैल घनी। हरिजू ..
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महि सराव, सप्त सागर घृत-बाती सैल घनी।  
  
 
रवि-शशि ज्योति जगत परिपूरन, हरति तिमिर रजनी।  
 
रवि-शशि ज्योति जगत परिपूरन, हरति तिमिर रजनी।  
उड़त फुल उड्डन नभ अन्तर, अंजन घटा घनी॥ हरिजू ..
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उड़त फुल उड्डन नभ अन्तर, अंजन घटा घनी॥  
  
 
नारदादि, सनकादि प्रजापति, सुर-नर-असुर अनी।
 
नारदादि, सनकादि प्रजापति, सुर-नर-असुर अनी।
काल-कर्म-गुनओर-अंत नहिं, प्रभु-इच्छा रजनी॥ हरिजू ..
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काल-कर्म-गुनओर-अंत नहिं, प्रभु-इच्छा रजनी॥  
  
 
यह प्रताप दीपक सुनिरंतर, लोक सकल भजनी।
 
यह प्रताप दीपक सुनिरंतर, लोक सकल भजनी।
 
सूरदास सब प्रकट ध्यान में अति विचित्र सजनी॥
 
सूरदास सब प्रकट ध्यान में अति विचित्र सजनी॥
 
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18:06, 31 मई 2014 के समय का अवतरण

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

 
हरिजू की आरती बनी।
अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी॥

कच्छप अध आसन अनूप अति, डांडी सहस फनी।
महि सराव, सप्त सागर घृत-बाती सैल घनी।

रवि-शशि ज्योति जगत परिपूरन, हरति तिमिर रजनी।
उड़त फुल उड्डन नभ अन्तर, अंजन घटा घनी॥

नारदादि, सनकादि प्रजापति, सुर-नर-असुर अनी।
काल-कर्म-गुनओर-अंत नहिं, प्रभु-इच्छा रजनी॥

यह प्रताप दीपक सुनिरंतर, लोक सकल भजनी।
सूरदास सब प्रकट ध्यान में अति विचित्र सजनी॥