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"ज़ुर्म / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
 
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::::दोस्तों के चेहरे पहचानता
 
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वे आए
 
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लाशों को लांघते
 
लाशों को लांघते
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और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
 
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::::::टूटा है
 
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हाँ
 
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मैंने माना
 
मैंने माना

14:31, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
और मैं बहुत मुश्किल से
पाँव टेकता
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
दोस्तों के चेहरे पहचानता
वे आए
लाशों को लांघते
इत्र लगाए
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
टूटा है
हाँ
मैंने माना
बहुत बड़ी चूक है यह
बहुत बड़ा जुर्म
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।